जब नरसिंह हरनन्दी का भात भरा तब कृष्ण ने भक्त की लाज रखते हुए सवा पहर सोना बरसाया और सिरसागढ के तमाम स्त्री पुरुषों और बच्चों व नवजात शिशुओं तक के कपङे दिए थे। ठीक भात की प्रक्रिया के दौरान किसी बच्चा हो गया और उसकी सूचना भात की पंचायत में नहीं पहुंची ।कृष्ण भात की रस्म पूरी करके चला गया और पीछे से नरसिंह सिरसागढ की गलियों से गुजर रहा था तो वो रिकार्ड तोङ भात भरने की चर्चा सुनता जा रहा था कि अचानक जिस घर मे भात के समय शिशु ने जन्म लिया था उस घर की किसी औरत ने कहा कि भरा होगा रिकार्ड तोङ भात हमारे बच्चे का तो एक बिलांत कपङा नहीं दे सका। यह सुनकर नरसिंह बनिए की दुकान में गया और अपना कमण्डल गिरवी रखकर उस बच्चे के लिए कपङा देकर आया। बाद मे वापिस आने पर कृष्ण ने नरसिंह से पूछा कि कहो भक्त भात कैसा रहा इस पर नरसिंह ने कहा भात क्या खाक भरा मेरा कमण्डल गिरवी रखकर पीछा छूटा है जा वो मेरा कमण्डल छुङवा के ला। उसके बाद भगवान कृष्ण ने ही ये नियम बना दिया कि भात भरने के बाद अतिरिक्त कपङा उस गांव के कांकङ पर जरूर छोङो ताकि कोई रह जाए तो वो ले ले।
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